जज़्बा
महफिल की शमा न बनो।
रोशन रहो जशने चिरागाँ की तरह ।
ज़माले सुखन न बनो जमाने का सुखन बनो।
ना भटको सराबो मे पशेमाँ हो कर हयाते सफर का सैलाबे नूर बनो।
न तराशो अपना अक्स इन पत्थरों मे
दौरे इर्तिका का शाहकार बनो।
गर गुरे़जा़ करो परततिश से पर मुनकिर् भी न बनो।