ग़ज़व
मोहब्बत का जादू, असरदार होता,
अगर दिल तुम्हारा,ख़बरदार होता।
ए दुनियां कसम से,बहुत ख़ूब होती,
अगर दिल का कमरा,हवादार होता।
ख़ूबसूरत ग़ज़ल, कह गए हैं चितेरे,
मज़ा उसको आता,जो हक़दार होता।
हरे हो गए सब, जो थे ज़र्द कल तक,
कहीं काश! ऐसा ही, संसार होता।
‘सहज’ बेईमानी फली,कुछ को बेशक।
कहीं न कहीं पर वो, गद्दार होता ।
000
@डा०रघुनाथ मिश्र ‘सहज’
अधिवक्ता /साहित्यकार
© COPYRIGHTS RESERVED