ग़ज़ल
एक ओस की बूँद, जब टकरा जाती है, मेरे बदन से
ऐसा लगता है कि पैगाम भेजा है यह मेरे सनम ने,
रह रह कर यादें ताजा कर देती है ,यह एक बूँद मेरे चमन में,
में प्यासी न रहूँ पिया के प्यार कि यह आकर बताती है बदन में,
उन कि याद का ताजा प्रमाण बन कर महका जाती है यह,
खुशिओं के आकर मेरे बदन में ,नई दुनिया सजा जाती है ये
बेकार ही में अपने मन से बाते किया करती हूँ,कि कहाँ होंगे वो
यह आकर यह जता जाती हे, कि वो मौजूद हैं मेरे इस बदन में
प्यासी धरती को जैसे बरसात में सहारा मिल जाया करता है
बस इसी तरह से मेरे बदन मेंइस बूँद का सहारा मिल जाया करता है
न जाने क्यों मन को मैं समझा नहीं पाती हूँ,
रह रह कर यादों में उनकी पगली हुई जाती हूँ
उनका एहसास बनकर जब यह ओस कि बूँद मेरे से टकराती है
सच कहती हूँ जैसे वो सामने आकर प्यार जताते हैं यह मुझे बतलाती है !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ