ग़ज़ल
न किसी को कभी रुलाना है
हर दम हर को तो हँसाना है|१
कर्मों के फुलवारी से ही
यह जीवन बाग़ सजाना है |२
दुःख दर्द सबको विस्मृत कर
जश्न ख़ुशी का ही मनाना है |३
मौसम का मिजाज़ जैसा हो
प्रेम गीत तो गुनगुनाना है |४
रकीब की मरजी पता नहीं
अपना घर नया बसाना है |५
चश्मा द्वेष का उतार देखो
दुनियाँ प्यार का खज़ाना है |६
गरीब और धनी बीच फर्क
भेद भाव सभी मिटाना है |७
मज़हब अलग अलग पर इक रब
सबको ये राज बताना है |८
© कालीपद ‘प्रसाद’