ग़ज़ल
छप गये अख़बार में और टीवियों में आ गये
हम तो तुमसे इश्क करके सुर्ख़ियों में आ गये
ख़्वाब से निकले थे तुम जब नींद से जागे थे हम
और यादों के बहाने हिचकियों में आ गये
क्या ख़बर थी बंद हो जाएँगे इनकी कैद में
हम भी भोले थे तुम्हारी कनखियों में आ गये
जब तुम्हारे गाँव से आती हवा ने तन छुआ
सच कहें हमको पसीने सर्दियों में आ गये
उड़ के जाओगे कहाँ बोलो हमें यूँ छोड़ कर
अब तुम्हारे पर हमारी मुट्ठियों में आ गये
एक मुद्दत बाद यूँ ही खोलकर पढ़ने लगे
बनके खुशबू तुम पुरानी चिट्ठियों में आ गये
तुम हमारे दिल में बसते थे कभी बनकर खुशी
बन के अब आँसू हमारी सिसकियों में आ गये
टूट कर ये भी गिरेंगी शाख़ से जैसे कि हम
अब हमारे रंग पीली पत्तियों में आ गये
‘सदी के मशहूर ग़ज़लकार’ में प्रकाशित
✍🏻जितेन्द्र कुमार ‘नूर’
आज़मगढ़