‘ग़ज़ल’
ग़ज़ल
कयामत बरस रही फ़िजाओं में,
अब क्या रखा है इन हवाओं में।
जिन्दगी नहीं ज़हर है निवाले में,
अब असर नहीं रहा दवाओं में।
ज़मी खाली नहीं है शहरों में,
बस्ती बसती नहीं है गाँवों में।
गली कूचे जल रहे हैं देखो जहाँ,
ठंडक मिलती नहीं है छाँवों में।
कंगना खनता नहीं है कलाई में,
पायल बजती नहीं है पाओं में।
स्वरचित
गोदाम्बरी नेगी
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