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13 Nov 2021 · 1 min read

ग़ज़ल

हमें बचपन लिए दर्पण कई मंज़र दिखा जाता
बड़ी मासूमियत थी चेहरों पर ये सिखा जाता//1

निभाना साथ दिल से दोस्तों का शाद करता दिल
कभी वो रूठना भी और चाहत को बढ़ा जाता//2

बनाई नाव क़ाग़ज़ की बड़े सपने बुना करती
किनारे से किनारे का सफ़र इससे पढ़ा जाता//3

खिलौने तब बना मिट्टी के खेला हम किया करते
दिलों की पीर को टूटा खिलौना इक जता जाता//4

सभी अपने लगा करते घरों के दर खुले आँगन
यही माहौल सच तहज़ीब अपनापन बता जाता//5

कहानी में सुनी परियाँ कभी राजा कभी रानी
इन्हीं में रब खुली सीरत बड़ा जीवन रचा जाता//6

निवाला छीन ले उसको बड़ा ‘प्रीतम’/कहूँ कैसे?
भला बचपन बिना मनभेद रोटी जो खिला जाता//7

आर.एस.’प्रीतम’
सर्वाधिकार सुरक्षित ग़ज़ल

1 Like · 2 Comments · 287 Views
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