ग़ज़ल
हमें बचपन लिए दर्पण कई मंज़र दिखा जाता
बड़ी मासूमियत थी चेहरों पर ये सिखा जाता//1
निभाना साथ दिल से दोस्तों का शाद करता दिल
कभी वो रूठना भी और चाहत को बढ़ा जाता//2
बनाई नाव क़ाग़ज़ की बड़े सपने बुना करती
किनारे से किनारे का सफ़र इससे पढ़ा जाता//3
खिलौने तब बना मिट्टी के खेला हम किया करते
दिलों की पीर को टूटा खिलौना इक जता जाता//4
सभी अपने लगा करते घरों के दर खुले आँगन
यही माहौल सच तहज़ीब अपनापन बता जाता//5
कहानी में सुनी परियाँ कभी राजा कभी रानी
इन्हीं में रब खुली सीरत बड़ा जीवन रचा जाता//6
निवाला छीन ले उसको बड़ा ‘प्रीतम’/कहूँ कैसे?
भला बचपन बिना मनभेद रोटी जो खिला जाता//7
आर.एस.’प्रीतम’
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