‘ग़ज़ल’
दरख़्त पथिक को परछाईं देता है,
सुकून भरी सबको ठंडाई देता है।
कर मेहनत छोड़कर आलस अपना,
पहाड़ चढ़ने पर ही ऊँचाई देता है।
झांकना खुद के अंदर भी सीखो लो,
सागर उतरने पर ही गहराई देता है।
नेक ख़्यालों को मेहमां बनाया करो,
जैसी रखोगे सोच वैसा दिखाई देता है।
बहनअपनी हो या पराई हिफ़ाज़त करो,
संसार इज्ज़त नाम की कमाई तभी देता है।
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गोदाम्बरी नेगी
हरिद्वार (उत्तराखंड)