ग़ज़ल
ग़ज़ल
मुहब्बत हो गई तुमसे इशारों ही इशारों में
दिखाई तू मुझे देती जिधर देखूँ नज़ारों में//1
खिलाया है चमन दिल का तुम्हीं ने दिल वफ़ा देकर
बहारों-सी मिली हो तुम किये अपने करारों में//2
सिले तूने दिये इतने बयाँ करना हुआ मुश्क़िल
बनी मेरे तुम्हीं हर ज़ख्म का मरहम हज़ारों में//3
सदाक़त ही दिलों को जोड़ती है याद रखता हूँ
खड़ी रहती नहीं दीवार बन शक़ की दरारों में//4
तेरी चाहत कभी ‘प्रीतम’ भुला सकती नहीं दिलबर
मुहब्बत में पड़े चलना चलूँगी मैं अँगारों में//5
आर.एस. ‘प्रीतम’
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