$ ग़ज़ल
30- बहरे हज़ज़ मुसम्मन अशतर
मक़्बूज़ मक़्बूज़ मक्बूज़
फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन
212/1212/1212/1212
# ग़ज़ल
बढ़ रही हैं दूरियाँ दिलो-दिमाग़ से यहाँ
खेलने सभी चले हुज़ूर आग से यहाँ/1
रोकलो अभी इन्हें जो आँधियाँ चली हुई
देर हो गई अगर बुझो चिराग़ से यहाँ/2
दोस्ती करो निभा सको तभी सुकून से
छल कभी बचा नहीं रसूख़ दाग़ से यहाँ/3
उलझनें जिन्हें हरा गई जहाँ मरे वहीं
जो हरा सके इन्हें खिले वो बाग़ से यहाँ/4
प्यार किस से कीजिये नजीब अब रहे कहाँ
लूट के हँसें डसें हयात नाग से यहाँ/5
#आर.एस. ‘प्रीतम’
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