$ग़ज़ल
#बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़
फ़इलातु फ़ाइलातुन फ़इलातु फ़ाइलातुन
1121/2122/1121/2122
#ग़ज़ल
हम ज़िंदगी जिसे मान चुके उसे मिला दो
सुनलो हबीब की मालिक इश्क़ का सिला दो/1
हर फ़ैसला गँवारा है अगर सही करो तुम
फिर ठोकरें मिलें या ख़िदमत मिले दिला दो/2
हर शह्र गाँव में हो हर तरफ़ ही उजाला
अँधकार की चलो साथ सभी जड़ें हिला दो/3
अधरों हँसों मुहब्बत रब से हुई हमारी
गुल चाहतों भरे दिल-गुलशन में अब खिला दो/4
तड़पा रहे हमें क्यों हम दे चुके वफ़ाएँ
निकले यहीं हमारा दम ज़ह्र ही पिला दो/5
कहना जहाँ अपराध हुआ वहाँ रहो मत
ये गुलाम ज़िंदगी है इसको सदा ग़िला दो/6
हम भी तुम्हें कभी भूल नहीं सके हैं ‘प्रीतम’
तुम चाँद हो हमारे शब मैं हुई जिला दो/7
#आर.एस. ‘प्रीतम’
सर्वाधिकार सुरक्षित ग़ज़ल