$ग़ज़ल
#ग़ज़ल
पीर का सागर हमारा दिल हुआ
क़ैद में जो हर मिला साहिल हुआ/१
तेज़ इतनी हो गई हैं आँधियाँ
झोंपड़ों का हर लम्हा क़ातिल हुआ/२
प्यार की बातें कहीं खो गई हैं
शह्र में दिल अब कहीं शामिल हुआ/३
घर बचेगा या छिनेगी ये ज़मीं
रोग से पीड़ित कहीं दाख़िल हुआ/४
चोट अपनों ने तुम्हें दी है यहाँ
दिल तभी तो आपका ग़ाफिल हुआ/५
ठोकरों से जीत आई ज़िंदगी
शौक़ काहिल हर हसीं मंज़िल हुआ/६
यार ‘प्रीतम’ छल नहीं कर दोस्ती
सब कहें बंदा बड़ा मानिल हुआ/७
#आर.एस. ‘प्रीतम’
सर्वाधिकार सुरक्षित ग़ज़ल