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10 Sep 2021 · 1 min read

$ग़ज़ल

बहरे रजज़ मुसम्मन सालिम
मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन
2212/2212/2212/2212

तुमसे मिले दिल से खिले अरमाँ नये सब हो गये
सोचा नहीं समझा नहीं हम आपके कब हो गये/1

इस प्यार में ऐसा नशा सबकुछ भुला देता कहीं
जब प्यार बोलें तब मिलें हम वो हसीं लब हो गये/2

जो हर ख़ुशी दे यार को मर मिट चले गर प्यार में
वो दोस्ती वो ही इबादत हम लिए अब हो गये/3

सब छोड़ दे रस्में तोड़ दे पर साथ बिलकुल भी नहीं
फिर ये समझ लो प्यार में हम दोस्तों नब हो गये/4

अहसान तो इस प्यार में होता नहीं ए दोस्तों
तेरा मिरा फिर क्या रहा दो एक दिल जब हो गये/5

हासिल वही होगा जिसे दिल में अगर तुम ठान लो
जो थे चले लेकर इरादा आज साहब हो गये/6

‘प्रीतम’ वही करना जिसे निज रूह ने भी है कहा
अब भी सही इतिहास में ये सच कभी तब हो गये/7

#आर.एस. ‘प्रीतम’
सर्वाधिकार सुरक्षित ग़ज़ल

2 Likes · 2 Comments · 465 Views
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