$ग़ज़ल
**बहरे मुतकारिब मुसद्दस सालिम
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन**
122/122/122
ख़ुशी है कहीं ग़म नज़र है
है ज़िंदा तभी तो असर है//1
मुरादें सभी दिल लिए हैं
सुने जो वही बेख़बर है//2
ज़रा जानिए खुद खुदी को
यही राह मंज़िल ज़फ़र है//3
जहाँ देखिये ज़िंदगी में
वहीं आँसुओं का सफ़र है//4
रहो तुम वहीं शौक़ से पर
तुम्हारी जहाँ भी क़दर है//5
मुसाफ़िर सभी ज़िंदगी में
अलग पर सभी की डगर है//6
सभी जल रहे हैं कहीं हों
खफ़ा चैन देखो जिधर है//7
#आर.एस. ‘प्रीतम’
सर्वाधिकार सुरक्षित ग़ज़ल