$ग़ज़ल
बहरे कामिल मुसम्मन सालिम
मुतफ़ाइलुन×4
#ग़ज़ल बह्र- 11212/11212/11212/11212
दिल मानता गर रूह की ग़लती कभी करता नहीं
दिन रात सब बनते हसीं दिल मौज़ ले डरता नहीं//1
हम भूल से खुद को भुला ग़म मोल ले भटके फिरें
कितना मिले मन भूख में फिर भी मग़र भरता नहीं//2
इस ओर भी उस ओर भी रब एक ही रहता सदा
मन भेद में समझे नहीं लड़ता रहे रुकता नहीं//3
हर आदमी फ़न एक तो रखता हसीं समझे अगर
समझे चला गर राह में उलटा क़दम रखता नहीं//4
हर मोड़ पर हर ज़िंदगी है तराशती हमको यहाँ
हम सीखते हर पल चलें यह सीखना थमता नहीं//5
#आर.एस. ‘प्रीतम’
सर्वाधिकार सुरक्षित रचना