ग़ज़ल
ग़ज़ल
काफ़िया-आने
रदीफ़- की बात करता हूँ
वज़्न-1212 1122 1212 22
ज़िगर से याद मिटाने की बात करता हूँ।
कि उम्र भर को भुलाने की बात करता हूँ।
दिए जो दर्द हमे इश्क़ में सनम तुमने
वो आज ज़ख्म गिनाने की बात करता हूँ।
दिया सनम है मुहब्बत का जो सिला तुमने
इसे कभी न छिपाने की बात करता हूँ।
दिये जो इश्क़ मुहब्बत में ख़त सनम तुमने
तमाम ख़त को जलाने की बात करता हूँ।
हैं इस क़दर उनसे आज नफ़रतें हमको
सनम से दूरी बढ़ाने की बात करता हूँ।
अभिनव मिश्र अदम्य