ग़ज़ल
2122 2122 2122
दूरियाँ वो आज करते जा रहे हैं।
इस लिए हमको नज़र ना आ रहे हैं।
भूलकर हमको खुशी हैं और के सँग
ख़ामियाँ मेरी उन्हें बतला रहे हैं।
ना जिसे पलभर समय मेरे लिए था
अब सुबह से शाम को घर आ रहे हैं।
गीत मेरा बिन सुने रहते नही जो
अब नही वो गीत उनको भा रहे हैं।
जो मुहब्बत को यहाँ रुसवा किये थे
वो सबब अब प्यार का समझा रहे हैं।
बेवफ़ाई कर उसे छोड़ा यहाँ है
अब वफ़ा का रूप वो दिखला रहे हैं।
कल तलक जो प्यार से मिलते रहे,अब
नफरतों के बीज बोते जा रहे हैं।
अभिनव मिश्र अदम्य