ग़ज़ल
आँखो से ही कह दो जानम, गुप् चुप ही इक़रार करो,
हमने कब ये माँगा तुमसे, चाहत को अखबार करो।
शीशे का जो दिल रक्खोगे, चूर चूर हो जाएगा,
इस ज़ालिम दुनिया के आगे, दिल को पत्थर यार करो।
खूब लिखा सपनो को अब तक, प्रेम कसीदे पढ़े कई,
अब तो खूने दिल से अपने, लफ़्ज़ों का श्रृंगार करो।
प्यार किसे कहते हैं यारा, खुद अहसास तुम्हे होगा,
इक वादे पर कच्चा घड़ा ले, जो तुम नदिया पार करो।
बहुत सुलह की बात हो चुकी, धीरज बहुत धरा अब तक
पानी सिर से ऊपर पहुँचा, आर करो या पार करो।
खिड़की से देखा है जितना , उतना ही आकाश मिला,
बेटी चीख चीख कर कहती, अब इसका विस्तार करो।
कैस डरा कब बोलो है या, लैला ने बंदिश मानी,
जान भी देकर यही सिखाया, प्यार करो बस प्यार करो।
सदियाँ गुज़री मज़लूमो को, मिला नही कोई हक़ भी,
जिम्मेदारी बनती अपनी, कुछ तो अब सरकार करो।
जिस पौधे को सींचा तुमने फल वो औरों को देगा,
उम्मीदें मत रक्खो उससे , सच ये बस स्वीकार करो।
लहू रगों में बलिदानी है, व्यर्थ बहाओ इसको मत,
टूट पड़ो अब आतंकी पर, खुद को इक तलवार करो।
किस मज़हब ने तुम्हे सिखाया, नफरत की खेती करना,
किस पुस्तक में लिखा हुआ है, लाशों का व्यापार करो।
चौराहो पर लुटी हमेशा, दांव लगी चौसर पे हो
नारी तुमसे अब विनती है,खुलकर तुम प्रतिकार करो।
तन्दूरो की आग सिसकती, तेज़ाबी बोतल कहती,
शर्म करो आदम के बच्चे, इंसा बन व्यवहार करो।
अहसासो ने ली अंगड़ाई, भाँवर पड़ी उम्मीदों की
ब्याह रचा है सपन ‘शिखा’ अब, दिल डोली तैयार करो