ग़ज़ल
मैं जानता हूँ कि अब तू ग़ैर है
मुझे जीना भी तेरे बग़ैर है
फिर भी मोहब्बत है तुझसे
मेरे दिल को मुझसे ही बैर है
बसा रखा है तुझे इन आँखों में
मेरा मन ही बना मेरा दैर है
रोज़ रुलाती हैं मुझे यादें तेरी
जीने नहीं देती ऐसी ये मैर है
तेरे दीदार को आज भी ये दिल
करता तेरी गलियों की सैर है
✍️ आलोक कौशिक
(साहित्यकार एवं पत्रकार)
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