ग़ज़ल
——ग़ज़ल ——–
कोई मुस्कुराया सवेरे सवेरे
मेरे दिल को भाया सवेरे सवेरे
मुझे जिस सितारे ने दी रौशनी थी
वो फिर जगमगाया सवेरे सवेरे
जिसे पूजता था खुदा से ज़ियादा
सदी बाद आया सवेरे सवेरे
जो चुभता था दिल में मेरे खार बनकर
वो दिल में समाया सवेरे सवेरे
जो करता था नफ़रत उसी ने तो मुझको
गले से लगाया सवेरे सवेरे
मेरा ख़्वाब टूटा तसव्वुर से जाकर
जब उसने जगाया सवेरे सवेरे
जो चिढ़ता था प्रीतम मेरे नाम से भी
मुझे गुनगुनाया सवेरे सवेरे
प्रीतम राठौर भिनगाई