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27 Jun 2019 · 1 min read

ग़ज़ल

अश्क़ आँखों में लिए उस से बिछड़ना है मुझे
फिर सितम ये भी कि रोने से मुकरना है मुझे

कल सँवारा था जिसे मोहब्बतों में ढाल कर
अब उसी के ही लिए पल पल बिखरना है मुझे

आरजू बाक़ी नहीं अब जो मुझे बहका सके
चाह में उसकी मग़र यूँ ही मचलना है मुझे

ज़िन्दगी में हिज़्र मतलब दर्द आँसू प्यास है
इश्क़ में इस लफ्ज़ का मानी बदलना है मुझे

मंज़िलों से कह दिया अब देर से आऊँगी मैं
आज उसकी राह से फ़िर से गुज़रना है मुझे

छीन कर जो है गया मेरी हँसी मेरी ख़ुशी
अश्क़ बनकर आँख से उसकी निकलना है मुझे
सुरेखा कादियान ‘सृजना’

3 Likes · 2 Comments · 245 Views
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