ग़ज़ल
अश्क़ आँखों में लिए उस से बिछड़ना है मुझे
फिर सितम ये भी कि रोने से मुकरना है मुझे
कल सँवारा था जिसे मोहब्बतों में ढाल कर
अब उसी के ही लिए पल पल बिखरना है मुझे
आरजू बाक़ी नहीं अब जो मुझे बहका सके
चाह में उसकी मग़र यूँ ही मचलना है मुझे
ज़िन्दगी में हिज़्र मतलब दर्द आँसू प्यास है
इश्क़ में इस लफ्ज़ का मानी बदलना है मुझे
मंज़िलों से कह दिया अब देर से आऊँगी मैं
आज उसकी राह से फ़िर से गुज़रना है मुझे
छीन कर जो है गया मेरी हँसी मेरी ख़ुशी
अश्क़ बनकर आँख से उसकी निकलना है मुझे
सुरेखा कादियान ‘सृजना’