ग़ज़ल
जहन में वो तो ख्वाब जैसा है
वो है बदन भी गुलाब जैसा है
बंद आँखों से पढ़ भी सकता हूँ
तेरा चेहरा किताब जैसा है
लोग प्यार से दीवाना कहते है
मेरे लिए ये ख़िताब जैसा है
मेरी पलके झुकी है सजदे में
दिल भी गंगा के आब जैसा है
हर घड़ी ज़िक्र तेरा ही करता रहूँ
ये नशा भी शराब जैसा है
अर्पित शर्मा अर्पित