ग़ज़ल
यह खुश नसीबी’ ही थी’, कि तुमसे जिगर मिले
हूराने’ ख़ुल्द जैसे’ मुझे हमसफ़र मिले |
किस्मत कभी कभी ही’ पलटती है’ अपनी’ रुख
डर्बी के ढेर में तेरे जैसे गुहर मिले |
था बेसहारा’ गरीब, सहारा मिला नहीं
क्या लाग देख जान, मुझे तेरा घर मिले |
है दूर देश में पिया’ मेरे, भेजना है ख़त
वीरान मुल्क में कोई तो नाम: बर मिले |
मिलते रहे सदा गले’ ओ हाथ रस्म में
मजबूत दोस्ती में’ जिगर से जिगर मिले |
नेता सभी पसंद करे नार, ज़र, ज़मीन
बंधन नहीं कहाँ कहाँ से किस कदर मिले |
इंसान हो गए हैं’ दयाहीन संगदिल
इंसानियत को’ एक रहम दिल बसर मिले |
खुद को न बंद रखना’ उदासी हिजाब में
संसार में सदैव को’ई रहगुज़ार मिले |
हूराने’ ख़ुल्द= स्वर्ग की अप्सराएं
गुहर =गौहर ,मोती
लाग=मज़ाक़ , नाम:बर=पत्र वाहक
बसर =आदमी , रहगुज़ार = रास्ता, राह
कालीपद ‘प्रसाद’