ग़ज़ल/ख़ुद को ख़ुदी की कहने दो
लोग कुछ कहते हैं कहते रहें ,कहने दो
तुम ख़ुद को ख़ुदी की कहने दो
इक़ दिन ये इरादें फ़ौलाद बनके चमकेंगें
रूह को वक़्त की नज़ाकत सहने दो
मुक्कमल हो जायें पर तो उड़ जाना ऐ परिंदे
अभी अदने हैं कुछ पर परिन्दे रहने दो
हर इक़ नदी समंदर तक पहुँचती है आख़िर
तुम ख़ुद को इक़ नदी सा बहने दो
कुछ तुम्हें करना है, कुछ ये वक़्त कर जाएगा
थोड़ी सी फ़सल इस वक़्त को गहने दो
__अजय “अग्यार