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22 Nov 2018 · 1 min read

ग़ज़ल/ख़लल अगर नहीं पड़ता

हम बेपनाह मोहब्बत करते हैं तुझे ,असर नहीं पड़ता
ये हमारा मुक़द्दर है जो तेरे रस्ते में हमारा घर नहीं पड़ता

हमारे बस में कहाँ है कि हम कहीं भी भटक जाएं रस्ता
इक ‘दिल्ली’ शहर के सिवा हमें कुछ नज़र नहीं पड़ता

बातों ही बातों में कल रात इक बात ज़ुबाँ से निकली कि
गले लगाएगी क्या ,इसी बात से ख़लल अगर नहीं पड़ता

गर इश्क़ की फरमाईशें ज़ुबाँ से ना निकले तो कैसा इश्क़
ना कहें जो कभी कभी दिली तो असर, अक्सर नहीं पड़ता

तूने रूह पे हमारी सवाल करके कितने अरमां ख़ाक कर डालें
ऐ सनम हम जैसे चराग़ बुझ जाएं तो हममें तेल उम्रभर नहीं पड़ता

~अजय “अग्यार

1 Like · 390 Views
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