ग़ज़ल- हो रहा बदनाम तो अब होने दो…
हो रहा बदनाम तो अब होने दो।
होगी चर्चा आम तो अब होने दो।।
हार कर घर बैठने से तो अच्छा है
हो रहा जो काम तो अब होने दो।।
आसमाँ को छूने की है ज़िद उसकी।
हो गया नाकाम तो अब होने दो।।
ढल रहा सूरज तो शब बाँकी अभी।
खुशनुमा इक़ शाम तो अब होने दो।।
थक चुका हूँ जिंदगी से अब बहुत।
मौत से इंतेकाम तो अब होने दो।।
ग़म लिए अब तो चला जाता नही।
फिर चलो इक़ जाम तो अब होने दो।
ढूंढ ही लेगा जमाना तो मुझे।
बस मुझे गुमनाम तो अब होने दो।।
हम खरीदेंगे तुझे हर दाम पर।
ख़ुद को तुम नीलाम तो अब होने दो।।
हँस रहे हो खूब हँस लेना मग़र।
‘कल्प’ को नाकाम तो अब होने दो।।
अरविंद राजपूत ‘कल्प’
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