ग़ज़ल:-सुन रे मनवा जिन्दगी इक मेला है।
ग़ज़ल
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सुन रे मनवा जिन्दगी इक मेला है,
कोई संग नही तेरे बस तूं अकेला है।
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हाथ को हाथ की यहां खबर नही,
अजीब दुनिया का, अजीब खेला है।
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अपने हमाम मे यहां हर कोई नंगा
वस्त्र है साफ,अन्दर से मन मैला है।
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सियासत के है यहां सब बादशाह,
है सब गुरु ही गुरु, कोई न चेला है।
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दुनिया की है यहां रीत बड़ी निराली,
दौलत वाला देव,गरीब इक ढ़ेला है।
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इक आंख मे आंसू, इक मे खुशियां,
सुन”जैदि” जिंदगी का यही खेला है।
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शायर:-“जैदि”
एल.सी.जैदिया “जैदि”