ग़ज़ल- रोज़ बीवी लड़े पड़ोसन से
ग़ज़ल- रोज़ बीवी लड़े पड़ोसन से
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चोर-लुच्चों का डर नहीं होता
तुम न होते तो घर नहीं होता
इतनी पालिश लगाए बैठे हो
हुस्न का भी असर नहीं होता
रोज़ बीवी लड़े पड़ोसन से
इश्क़ क्यूँ इस क़दर नहीं होता
रोज़ खाओ पुकार गुटखा तुम
क्यूँ कि कोई अमर नहीं होता
याम आठो न मुँह चलाते तो
जिस्म मोटा शजर नहीं होता
जिसको मदिरा ‘आकाश’ कहते हो
वैसा कोई गटर नहीं होता
– आकाश महेशपुरी
दिनांक- 19/12/2020