ग़ज़ल- रहे जो दिल में वही हमको भूलते अक़्सर…
रहे जो दिल में वही हमको भूलते अक़्सर।
बसा के दिल मे किराया बसूलते अक़्सर।
क़दम-क़दम पे जिसे खुशियां मिली जन्नत सी।
ज़रा ज़रा से ग़मों में वो कूल्हते अक़्सर।।
मिटाना चाहता जो अक़्स मेरा सीने से।
तभी तो नज़्र में हम उसकी झूलते अक़्सर।।
जिसे मनाने को हम जिंदगी समझते हैं।
ज़रा सी बात पे हमही से फूलते अक़्सर।।
चढ़े जो ‘कल्प’ शिखर देवता के मंदिर में।
कमल के फूल तो कीचड़ में फूलते अक़्सर।।
अरविंद राजपूत ‘कल्प’
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