#ग़ज़ल-54
#ग़ज़ल
तेरी गली से हम गुज़र के प्यार देखेंगे
सपने तिरे हमदम हज़ारों बार देखेंगे/1
छूकर लबों से फूल फैंकों या शिला मारो
लेकर ज़ख्म कूचा तिरा हम यार देखेंगे/2
तुम देख हमको बंद कर लोगे हर दरवाज़ा
दीदार की हसरत लिए दिल हार देखेंगे/3
सूने घरों में झाँकिए जाले लगे मिलते
दिल छोड़के तेरे हवाले सार देखेंगे/4
हों फूल झोली में नहीं क़िस्मत लिखाएँ हैं
चाहत मगर दिल में लिए गुलज़ार देखेंगे/5
रखता ख़ुदा सबपर नज़र है ये सुना हमने
हम आज़माके के खुदी साकार देखेंगे/6
डर भागना हल तो नहीं है बात का ‘प्रीतम’
हम उलझनों को जोश में ललकार देखेंगे/7
-आर.एस.’प्रीतम’
अरक़ान(बहर,छंद)–
मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़
मीटर–2212 2212 2212 22