ग़ज़ल/मुझें कभी कभी ज़िन्दगी मिलती है।
मैं जितना ख़ुश होता हूँ, उतनी ख़ुशी मिलती है
ये सच है, मुझें कभी कभी ज़िन्दगी मिलती है
सब कुछ है भी मेरे पास ,और कुछ है भी नहीं
मैं फ़िर भी ख़ुश हूँ कि इक ही ज़िन्दगी मिलती है
इक चीज़ है जो परेशां करती है,हर पल हर घड़ी
वो अब खो सी गयी है, मुझें कहीं नहीं मिलती है
लोग मोहब्बत भी खरीद लिया करते हैं आजकल
यारों इसीलिए हमें मोहब्बत में, बेबसी मिलती है
वो लोग,वो कुछ लोग हमारा मज़ाक उड़ाकर गए
उन्हें जब जब देखता है दिल भी, बेख़ुदी मिलती है
मैं कभी कभी रो पड़ता हूँ हँसने के बाद, जाने क्यों
मुझें बस हरजाई मिलती है,कोई हंसीं नहीं मिलती है
~अजय “अग्यार
नजीबाबाद(उत्तर प्रदेश)