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20 Feb 2018 · 1 min read

ग़ज़ल( बीते कल को हमसे वो अब चुराने की बात करते हैं)

सजाए मौत का तोहफा हमने पा लिया जिनसे
ना जाने क्यों वो अब हमसे कफ़न उधार दिलाने की बात करते हैं

हुए दुनिया से बेगाने हम जिनके इक इशारे पर
ना जाने क्यों वो अब हमसे ज़माने की बात करते हैं

दर्दे दिल मिला उनसे वो हमको प्यारा ही लगता
जख्मो पर वो हमसे अब मरहम लगाने की बात करते हैं

हमेशा साथ चलने की दिलासा हमको दी जिसने
बीते कल को हमसे वो अब चुराने की बात करते हैं

नजरें जब मिली उनसे तो चर्चा हो गयी अपनी
न जाने क्यों वो अब हमसे प्यार छुपाने की बात करते हैं

ग़ज़ल( बीते कल को हमसे वो अब चुराने की बात करते हैं)

मदन मोहन सक्सेना

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