ग़ज़ल- देखकर शोहरत मेरी क़ातिल जमाना हो गया
देखकर शोहरत मेरी क़ातिल जमाना हो गया।
नाम के सिक्के चले ग़ाफ़िल जमाना हो गया।।
ख़ून कत्लेआम ने टुकड़े ज़मीं के कर दिए।
प्यार से दिल जीतकर वासिल जमाना हो गया।।
कल तलक़ हम थे अकेले ज़ाहिलों की भीड़ में।
साथ मे चलकर तेरे फ़ाज़िल जमाना हो गया।।
आशियाना आसमाँ में हम बनायेंगे सनम।
चाँद पर रखकर क़दम ताहिल जमाना हो गया।।
नफ़रतों में खो गये रिश्ते हमारे ‘कल्प’ कब।
चाह तेरी मिल गई हासिल जमाना हो गया।।
ग़ाफ़िल-बेहोश,
वासिल- एक दूसरे में मिल जाना,
फ़ाजिल- निपुण, विद्द्वान,
ताहिल- रचनात्मक उदार,
हासिल- प्राप्त कर लेना
✍? अरविंद राजपूत ‘कल्प’
बहरे- रमल मुसम्मन महजूफ़
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