ग़ज़ल- दिल मे खुद्दारी रखो, अपनी छवि न्यारी रखो
दिल मे खुद्दारी रखो, अपनी छवि न्यारी रखो।
गफलतों में मत पड़ो, बस समझदारी रखो।
यार से यारी रखो, दुश्मनी प्यारी रखो।
साथ छूटे या बने, बस वफादारी रखो।।
सत्य पर चलते रहो, राह से भटको नही।
वक़्त जब विपरीत हो, बस समझदारी रखो।।
ये बलाएँ आएँगी, फ़िर कला दिख लाएँगी।
हर विपत्ति काल में, बस वज़नदारी रखो।
कर्म को पूजा समझ, चाह फ़ल की छोड़ दो।
‘कल्प’ सब कुछ छोड़ कर, काम से यारी रखो।।
✍?अरविंद राजपूत ‘कल्प’
बह्रे- बसीत मुसम्मन सालिम
वज्न- मुस्तफएलुन फाएलुन मुस्तफएलुन फाएलुन
2122 212 2122 212