#ग़ज़ल-53
मीटर–122 122 122 12
दिए हैं हज़ारों सिले हार के
जलाके हृदय-दीप ये प्यार के/1
सदा मैं फ़िदा ही रहा हर क़दम
चला छोड़ सब साथ मैं यार के/2
न आया हमें तो कभी रूठना
खिले फूल-से भूल दिन ख़ार के/3
छुरी पीठ पर ना चलाना कभी
बहादुर बनो लाल ललकार के/4
चलो नेक बन ज़िंदगी में सदा
नज़र में रहोगे बने चार के/5
गिला कर न खुद पर कभी भूल से
मिटे मन बिना एक हथियार के/6
नमी आँख की ये कमी जान लो
दिखाती सही खेल लाचार के/7
पता पूछते हम कहाँ जा रहे
न जाने कभी राज ही द्वार के/8
मिले तो नहीं हम न मिलता ख़ुदा
चले हम सिरे तोड़ एतबार के/9
हसीं है जहां यार प्रीतम खरा
मिलें तोड़कर भेद दीवार के/10
-आर.एस.’प्रीतम’