ग़ज़ल- था भरोसा मगर सब धुंआ हो गया
ग़ज़ल- था भरोसा मगर सब धुंआ हो गया
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था भरोसा मगर सब धुंआ हो गया
नाम जिसका वफ़ा बेवफा हो गया
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सिर्फ मतदान कर के जरा सोचिए
फर्ज क्या आपका है अदा हो गया
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जिंदगी में खुशी की तमन्ना रही
क्यूँ गमों का मगर सिलसिला हो गया
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वो विधायक बना जबसे है साथियों
ऐसे मिलता है जैसे खुदा हो गया
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तुम अभी भी वही ढूंढते हो सुकूं
ये नया दौर है सब नया हो गया
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ऐसे ज़ालिम को “आकाश” क्या नाम दूँ
दिल चुरा कर मेरा जो जुदा हो गया
– आकाश महेशपुरी