ग़ज़ल/तेरी बेरुख़ी भी अच्छी लगती है
हमें तेरे चेहरे पे हँसीं अच्छी लगती है
तू हँसती है तो ज़िन्दगी अच्छी लगती है
तेरा गुस्सा हाय तौबा तेरी बेरुख़ी जालिमा
अरी हमें तो तेरी बेरुख़ी भी अच्छी लगती है
इक तू ही नहीं तेरी हर अदा अच्छी लगती है
तेरे नैना हिरनी जैसे हमें हिरनी अच्छी लगती है
तू नीले लिबास में आसमां सी सफेदी में चाँदनी
हमें तेरे माथे पे वो छोटी सी बिन्दी अच्छी लगती है
यूँ तो जहाँ में बहुत अजीबोगरीब शहर हुआ करते हैं
मग़र ना जानें क्यों हमें तो दिल्ली ही अच्छी लगती है
तुझे ना देखें तो मर जाएंगे और देखकर जीते मरते हैं
दिल में आयतें लिखी हैं पढ़ ले ,तू कितनी अच्छी लगती है
~अजय”अग्यार