ग़ज़ल/तू ही हिन्दी मेरी तू ही उर्दू है
आज सर से लेकर पाँव तलक सुकूँ ही सुकूँ है
ये तेरा असर है मुझपे,तेरी झलक जुनूँ ही जुनूँ है
मैं ना भुला पाऊँगा कभी ये हँसीं लम्हें प्यार के
सोने चाँदी की तरहा मुझपे नेमत, तेरी गुफ़्तगू है
इन साँसों को मेरी आँखों को तेरी ही जुस्तजू है
तेरे सिवा कुछ दिखता नहीं, ज़िन्दगी में तू ही तू है
तू ख़्वाब है या ख़्वाबिदा पर जो भी है कमाल है
ख़ुद को भूल गया मैं ,चौतरफ़ा मेरे जुगनू ही जुगनू हैं
तू नहीं तो नज़्म क्या तू नहीं तो फ़िर ग़ज़ल क्या है
तू क़लम है स्याही भी मेरी ,तू ही है हिन्दी तू ही उर्दू है
मैं तन्हा था तो मेरे ज़ख्मों की दरारों पे हवा लगती थी
अब तू मिल गया है तो क्या चाहिए हर ज़ख्म पे रफ़ू है
रहूँ अंजुमन में कभी या किसी वीराने में,तेरा नाम लूँगा
तू ही मेरी पहली आरज़ू है ,तू ही मेरी आख़िरी आरज़ू है
~अजय “अग्यार