ग़ज़ल /गीतिका
ताज़ा’ कानून लाभकारी है
घूस खोरों में’ बेकरारी है |
देश में आज अंध हैं श्रद्धा
अंध विश्वास इक बिमारी है |
अब मुहब्बत अदालतों में दर्ज
मामला कत्ल फौजदारी है |
दागे* दिल का यही मुकदमा था, *कष्ट
कोर्ट-आशिक में’ रूबकारी* है | *सुनवाई
बार बार एक बात दुहराता
आम जनता बनी अनारी है |
है वही वायदे, पुराने सब
मुफलिसों के फ़क्त अश्क्बारी* है | *आँसू बहांना
देख, जनता बनी यहाँ मर्कट
रहनुमा आज का मदारी है |
फिर वही झूठ, बेवफाई क्यों
कैसी’ ये जिंदगी विकारी है ?
बे वज़ह मस्ती’ तो नहीं होती
राज क्या जिसकी’ पर्दा’ दारी है ?
बुद्ध था नाम दुनिया’ में ‘काली’
जो बना प्रेम का पुजारी है |
कालीपद ‘प्रसाद’