ग़ज़ल- गमों की रात है काली घना अंधेरा है..
ग़मों की रात है काली घना अंधेरा है।
इसी के बाद ख़ुशी का नया सबेरा है।।
ये तेरी भूल है नादा कि चाँँद तेरा है।
हरेक बाम़ पे अब चाँद का बसेरा है।।
हमारी कौन सुनेगा भला ज़माने में।
दिलों के भाव को कागज़ पे ही उकेरा है।।
हुआ हूँ इश्क़ में अंधा न दिख रहा मुझको।
दिखाई देता मुझे अक्स़ इक़ तेरा है।।
किये जा लाख जतन ‘कल्प’ दूर रहने के।
गली गली में तू बदनाम नाम मेरा है।।
✍? अरविंद राजपूत ‘कल्प’
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