ग़ज़ल खूब कहता हूँ
मैं ग़ज़ल खूब कहता हूँ सुन लीजिये
ख़्वाब आँखों में कोई तो बुन लीजिये
इन ग़मों में ही गुम है घड़ी खुशनुमा
होंगी दुश्वारियाँ किन्तु चुन लीजिये
ज़ख़्म कैसे भी हों यार भर जायेंगे
कोई हल इन दुखों का जो चुन लीजिये
अब अकेले गुज़ारा भी दुश्वार है
हमसफ़र आज कोई तो चुन लीजिये
जिसपे ये सारा आलम थिरकने लगे
इस ग़ज़ल के लिए चुन वो धुन लीजिये