ग़ज़ल/ उसके सिवा कोई ख़्वाब नहीं दिखता
मुझें लाखों ग़ुलाबों में इक़ ग़ुलाब नहीं दिखता
वो इतना है लाज़वाब कोई ज़नाब नहीं दिखता
मेरी गली में रात को भी आफ़ताब दिखता है
कौन कहता है ,रातों में आफ़ताब नहीं दिखता
कोई ग़ौर से देखे मेरी आँखों में आब-ए-हयात
उसके बिना, मेरी आँखों में आब नहीं दिखता
मेरी नींदों में भी है वो, मेरी धड़कनों में भी है
मुझें इक़ उसके सिवा कोई ख़्वाब नहीं दिखता
~अजय “अग्यार