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24 Dec 2021 · 1 min read

ग़ज़ल आकिब जावेद- आईने पे धूल भारी हो गई है

तेरी ख़ुमारी मुझपे भारी हो गई है।
उम्र की मुझपे यूं उधारी हो गई है।।

मुद्दतों से खुद को ही देखा नही
आईने पे धूल भारी हो गई है।।

चाहकर भी मौत अब न मांगता ।
ज़िन्दगी अब जिम्मेदारी हो गई है।।

छुपके-छुपके देखते जो आजकल।
उनको भी चाहत हमारी हो गई है।।

जिनके संग जीने की कस्मे खाईं थीं
उनको मेरी ज़ीस्त भारी हो गई है।।

चंद दिन गुज़ारे जो तेरे गेसुओँ में।
कू ब कू चर्चा हमारी हो गई है।।

कह रहा मुझसे है आकिब ये जहां
दुश्मनो से खूब यारी हो गई है।।

-आकिब जावेद

1 Like · 249 Views
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