ग़ज़ल – अज़ब ये तरक़्क़ी अज़ब है ज़माना)
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ग़ज़ल
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हक़ीक़त न बोले बनाये फ़साना
अज़ब ये तरक्की अज़ब है ज़माना //१
नहीं आज उसमें ज़रा सी भी शफ़क़त
ग़रीबों की लाशों में ढूंढे ख़ज़ाना //२
सँवारा जिसे था बड़ी आरज़ू से
बुढ़ापा में छीना वही आशियाना //३
ज़रूरी कहाँ है गिराना ज़मीं पे
है काफ़ी उसे बस नज़र से गिराना //४
गुलों की तरह है मेरे दिल की हसरत
मसल दो न छोड़े ये ख़ुशबू लुटाना //५
क़मर जाने कब से भटक ही रहा है
तेरा शह्र दर शह्र ढूंढे ठिकाना //६
— क़मर जौनपुरी