ग़ज़ल ..”’…..अक़्स बूंदों में दिखाते हैं..”
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गुज़रते पल गुज़रते छिन कभी हमको रुलाते हैं
कभी देकर सदायें वे हमें वापस बुलाते हैं
दिलों को जोड़ने वाली उन्ही टूटी दीवारों से
टपकते जल तुम्हारा अक़्स बूंदों में दिखाते है
हमारी बात दिल की रह गयी दिल में हमेशा को
न जाने क्यों हमारे बाप माँ रिश्ते बुलाते हैं
… वही आँखें वही मुस्कान हरदम याद आते हैं
ग़ज़ल की पंक्तियों से शब्द को वो बदल जाते हैं
कदम तेरे जिधर जाते दिखे हमको लकीरों से
उसी पथ पर चला करते कभी थे हम बताते हैं
बहुत सोचा बहुत चाहा बहुत रोया किया बेबस
बहुत से लोग हैं अब तक हमें मज़हब सिखाते हैं
… जिसे न पा सके कोई वही लगता पियारा है
वगरना आज के इंसां ”ब मतलब निकलवाते हैं
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रजिंदर सिंह छाबड़ा