ग़ज़ल।मुहब्बत आप करते हो ।
ग़ज़ल।मुहब्बत आप करते हो।।
यकीं माने तो क्यों माने मुहब्बत आप करते हो ।
मुहब्बत वो नही जिसकी हिफ़ाजत आप करते हो ।।
तेरे जज़्बात तक मुझको बड़ी तकलीफ़ देते है ।
मुझे मालूम है बेशक़ शराफत आप करते हो ।।
हुआ खुदगर्ज़ क्या मतलब ज़माने के दिलाशो से ।
मग़र जबतब ज़बाने की वक़ालत आप करते हो ।।
मुझे मंजूर का मतलब मुझको मत मिटा डालो ।
ग़मो में भी कमीनों सी शरारत आप करते हो ।।
आशिक़ हो सितमगर हो क़ातिल हो यक़ीनन तुम ।
दीवाने इस मेरे दिल पर हुक़ूमत आप करते हो ।।
अदाएं है अदाओं पर जो बंदिश हो तो कैसे हो ।
शकों पर बेवजह मुझसे नफ़ासत आप करते हो । ।
मुझे हर बार मिलती है सज़ा तेरे गुनाहों की ।
गवाही आँख भर देती ज़मानत आप करते हो ।।
© राम केश मिश्र