ग़ज़ल।पर तुम्हारी आँख सा आइना कोई नही।
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बाद जाने के तेरे आसरा कोई नही ।
इश्क़ मे डूबा मग़र फ़ायदा कोई नही ।
है बहुत से आइने अलगरज संसार मे ।
पर तुम्हारी आँख सा आइना कोई नही ।
ढूढ़ता मै रह गया वो सुनामी इश्क़ की ।
जिंदगी मे आ सका ज़लज़ला कोई नही ।
लोग जाने किस सनक मे दोस्ती करते रहे ।
दिल यहा ख़ाली पड़ा दाख़िला कोई नही ।
छोड़ करके दोस्ती मस्तियां करने लगा ।
आशिक़ी का आज़कल क़ायदा कोई नही ।
क़हक़हे सबके सुने रह गया ख़ामोश मैं ।
दिल का मेरे ले रहा जायज़ा कोई नही ।
दिल मसल रकमिश गये मंजिलों के पास ही ।
दूरियां तक दूर जब फ़ासला कोई नही ।
✍रकमिश सुल्तानपुरी