ग़ज़ल।जहां मे ज्ञान का पौधा सदा बोता रहा शिक्षक ।
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,ग़ज़ल ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
सजता राह जीवन की स्वंय खोता रहा शिक्षक ।
जहां मे ज्ञान का पौधा सदा बोता रहा शिक्षक ।
हमारी एक ग़लती पर हमे वो डांटने लगता ।
दिखाकर राह सच झूठी सज़ा देता रहा शिक्षक ।
मिले जो कामयाबी तो वो पीठें थपथपाता है ।
हमारी हार सुनकर के दुखी होता रहा शिक्षक ।
बने हम नागरिक सच्चे करें हम देश की सेवा ।
हमेशा देश भक्ति मे हमे धोता रहा शिक्षक ।
सिखाता पाठ जीवन के मिटाता अन्ध हृदय से ।
महापुरुषों के साये को ख़ुदी ढ़ोता रहा शिक्षक ।
पिता, माता ,सखा, भाई तनय सा प्यार देता है ।
सभी रिस्तो के सागर मे लगा गोता रहा शिक्षक ।
करेंगे नाम दुनियां मे यही उम्मीद रख “रकमिश ।
चिरंगुन हम बना पंछी हमे सेता रहा शिक्षक ।
राम केश मिश्र
सुलतानपुर उत्तर प्रदेश