ग़ज़ल/गीत
22 22 22 22 वाचिक मापनी आधारित
काम करूँ तो काम न आये।
राम जपूँ तो राम न आये।
यह सोच वतन मेँ काम करूँ।
मुझ पर तो इल्जाम न आये।
थक जाऊं चल चल कर मैं।
क्या करूँ फिर भी मुकाम न आये।
जिस दिन याद न आओ मुझको।
रब दी सो वो शाम न आये।
राह गुज़र होती कब तन्हा।
साथ बिना आराम न आये।
मेरी मोहब्बत मुफ़्त बिकी।
दिल तो गया पर दाम न आये।
मुक्तक कविता और रुबाई ।
दिल को तसल्ली काम न आये।
जीस्त कटी सजदे में सारी।
लेकिन रूबरू श्याम न आये।
कागज़ ख़ाली ख़ाली मिलते।
हाले दिल पैगाम न आये।
सज़दे कर कर के खलास हुए।
फिर भी उनके सलाम न आये।
दीप शिखा मानिन्द जला दिल।
दिल में बसे गुलफाम न आये।
मिलने को मिल जाते ‘मधु’ सब।
मिलने को गुमनाम न आये।
*****मधु गौतम